सेवाजोहार (डेस्क):- वैसे तो हर दिन माँ का है और हर के दिलों में माँ है। आज मदर्स डे है आज के दिन को खास बनाने के लिए सभी लोग सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर अपनी माँ की साथ प्यारी यादों को संजोए फ़ोटो शेयर कर रहे है। सोशल मीडिया हैंडल पर जबलपुर रेल्वे की महिला पुलिस अधीक्षक सिमाला प्रसाद ने भी अपनी माँ मेहरूनिशा के साथ न सिर्फ एक सुंदर फ़ोटो शेयर की है बल्कि उस फ़ोटो में बेहद ही मार्मिक रचना भी लिखी है। जिसे लोग काफी पसंद कर सराहना भी कर रहे है। आपको बता दे कि सिमाला प्रसाद की माँ मेहरूनिशा भी एक सुप्रसिद्ध लेखिका है।
On mother's day ! pic.twitter.com/aFBp2MswBh
— simala_prasad (@simala_prasad) May 12, 2024
सिमाला प्रसाद ने लिखा है :-शायद मैं मां को समझने लगी हू
कभी-कभी लगता है शायद मैं मां को समझने लगी हूं!
बेटा खाना खा लिया ? हर दिन पूछे जाने वाले इस सवाल को ,
खाने के पीछे छिपे उस प्यार और दुलार को शायद मैं अब समझने लगी हूं ।
सपने तो मेरे हैं मैं ,मानती हूं
मगर पंख मां ने लगाए हैं, जानती हूं
मेरी उड़ान आसमान से ऊंची हो
मां यही मन्नत मांगती आई है ,जानती हूं ।
जब भी खुद को आईने में देखती हूं
तो मां का अक्स खुद में पाती हूं
सबसे सुंदर मां की साड़ी में ही लगती हूं
अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि मैं मां जैसी दिखती हूं
जब भी मां मेरी खाकी वर्दी में सितारे लगाती हैं
उसकी चमक मां की आंखों में नजर आती है
बचपन से जानती हूं कि मैं मां की आंख का तारा हूं, अंधेरे को रोशन करने वाला उजियारा हूं
खुद से पहले दूसरों को रखने का सबक मैं मां की आंखों में पढ़ती आई हूं
मेरे आने की खबर पर मां की आंखें घर के सामने की सूनी सड़क को ताकती हैं ,जानती हूं
मेरे कॉल के इंतजार में अपने फोन को बार बार देखती हैं, मैं जानती हूं
मां के सब्र का एहसास है मुझे
मैं शायद मां को समझने लगी हूं
मां की धड़कनों का बहीखाता खोल रखा है मैंने
हिसाब में किसी भी तरह की कमी को बेहिचक
मेरी सांसों से पूरा करने को ऊपर वाले को बता रखा है मैंने
मां के होने का एहसास शायद में समझने लगी हूं
मां के न होने को कभी जानना नही चाहती हूं
बचपन से मां के वक्त पर अपना अधिकार माना है मैंने
मां भी शायद मेरे वक्त से कुछ पल अपने लिए चाहती हैं
वो कभी कहती नहीं पर मैं जानती हूं
शायद मैं मां को समझने लगी हूं।
जबलपुर रेल्वे पुलिस अधीक्षक सिमाला प्रसाद द्वारा लिखी रचना।