Thursday, October 16, 2025

कोई सगा ही क्यों न हो उसे खुलकर बुरा कहो : मनीष तिवारी,वरिष्ठ पत्रकार

सेवाजोहार (डेस्क):- इन दिनों एक नया चलन चल निकला है कि जो भी पुरानी परंपराएं हैं चाहे वो अच्छी हैं या बुरी हमें उनका विरोध करना ही है। अक्सर हरितालिका, करवाचौथ के दौरान इस तरह की विरोध की स्थिति देखने को मिल जाती है। इसके अलावा दूसरी कई बातें हैं जिन्हें लेकर विरोध किया जाता है। कई बार मजाक बनाए जाते हैं। पहले के लोग इन मजाक, चुटकुलों का आनंद लेते थे लेकिन आजकल बल्कि हाल के दिनों में भावनाएं तेजी से आहत होने लगी हैं। खैर, ऐसा ही एक नया चलन अब शुरु हो रहा है। हमारे ब्राम्हण समाज के कुछ संगठनों की राय है कि रावण का पुतला नहीं जलाया जाना चाहिए। इसके पीछे न सिर्फ जातिवादी बल्कि रावण के विप्र और विद्वान होने के तर्क दिए जाते हैं। ना जाने कब से रावण के पुतले को जलाए जाने की परंपरा शुरु हुई। गूगल देव की मानें तो आजादी के बाद रांची में पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने इस पंरपरा को शुरु किया था और लगभग पांच साल बाद दिल्ली में भी रावण दहन की शुरुआत हुई थी। अब तो देश के गांव-गांव और शहर-शहर, मोहल्ला-मोहल्ले में रावण दहन किया जाता है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि रावण की बुराइयों को जलाकर खत्म करते हैं लेकिन कमाल की बात यह है कि बुराई के प्रतीक रावण की ऊंचाई हर साल फीट-दर-फीट बढ़ती जा रही है।
कई तरह की मान्यताएं
रावण को लेकर देश में कई तरह की मान्यताएं हैं। मध्यप्रदेश के मंदसौर में रावण को जमाई या दामाद माना जाता है और उसके पुतले के सामने से बुजुर्ग महिलाएं घूंघट काढ़कर निकलती हैं। ये अलग बात है कि मंदसौर में रावण को जमाई माना जाता है और पूरे भारत में जमाई को ……। खैर, प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में रावण को लेकर अलग तरह की मान्यताएं हैं। कुछ साल पहले तक सिवनी जिले के कुरई क्षेत्र में रावण की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता था। छिंदवाड़ा के एक गांव में भी इसी तरह की परंपरा देखी जाती है।
आखिर किसका दशानन
रावण को लेकर देश में अलग-अलग सोच हैं। अधिकतर हिस्सों में माना जाता है कि रावण ब्राम्हण था। इस संबंध में कोई मुझसे पूछता है तो मजाक में मेरा उत्तर होता है कि हमसे तो उसका कोई संबंध नहीं है लेकिन शायद मेरे ससुराल पक्ष से उसका कोई रिश्ता जरूर है। इतना कहने के बाद में घर से कुछ घंटों से के लिए लांग वाक पर निकल जाता हूं। खैर मजाक छोड़िए लेकिन अब बीते कुछ बरसों से यह हो रहा है कि आदिवासी समाज भी दशानन पर अपना दावा ठोंकने लगा है। सिवनी जिले के घंसौर, लखनादौन और दूसरे हिस्सों में रावण को पूर्वज बताते हुए पुतला दहन पर रोक लगाने की मांग प्रशासन से की जाती रही है। हांलकि इसे लेकर भी मतभेद है। कई आदिवासी नेता इस मांग से सरोकार नहीं रखते।
तुम तो ऐसे न थे पंडित जी
पिछले दिनों छिंदवाड़ा में रावण पुतला दहन न किए जाने की मांग को लेकर छिंदवाड़ा जिले में ब्राम्हण समाज ने अपना विरोध जताया है। बीते कई सालों से मैं एक बात अक्सर कहता रहा हूं कि अगर ब्राम्हण जातिवादी होता तो उसका आदर्श राम नहीं रावण होता। वैसे भी ब्राम्हणों ने हमेशा से समाज के लिए अपना बलिदान तक दिया है। चाहे आप दधिची की बात कहें। परशुराम की बात करें, सुदामा की बात करें, अटल जी की बात करें। ब्राम्हण मनीषी होते हैं। अपने मस्तिष्क की ताकत के दम पर ब्राम्हणों ने कई ताज गिरा दिए औऱ कई ताज बनवा दिए। मेरा मानना यह है कि रावण के पुतले का दहन किसी ब्राम्हणवंशी का पुतला दहन नहीं है ना ही ब्राम्हणों का विरोध है। इस बात में कोई ऐतराज नहीं है कि रावण काफी विद्वान थे और उनका बाहुबल, भक्ति भी काफी थी। सिर्फ एक बुराई के चलते वे आज बुराई के प्रतीक बन गए। वैसे कुछ लोगों का मानना है कि रावण को अपनी मृत्यु का भान था लेकिन वह न सिर्फ अपना बल्कि अपने पूरे राज, समाज और बंधु-बांधवों का कल्याण कर उन्हें मोक्ष प्रदान करना चाहता था इसलिए उसने ये कदम उठाया। यह भी सच है कि अगर रावण नहीं होता तो राम जन्म का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता और समाज को मर्यादा पुरषोत्तम के रूप में एक आदर्श नहीं मिल पाता। जिनकी मिसाल अबतक नहीं मिलती। वैसे भी ब्राम्हण समाज में प्रतिभाओं का कोई अकाल नहीं है। भगवान परशुराम से लेकर अब तक ना जाने कितने ब्राम्हण हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर समाज का मार्गदर्शन किया है। खैर अपना तो मानना है कि अगर कोई बुरा है या गलती कर रहा है चाहे वो फिर अपना कोई सगा ही क्यों न हो उसे खुलकर बुरा कहो।
क्या थे रावण के अवगुण
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के क्या गुण थे|
‘उसने तीनों लोकोंके प्राणियों का नाकोंदम कर रखा है। वह दुष्टात्मा जिनको कुछ ऊँची स्थिति में देखता है, उन्हीं के साथ द्वेष करने लगता है। देवराज इन्द्र को परास्त करनेकी अभिलाषा रखता है॥ ८ ॥
(वाल्मीकि रामायण बालकांड)

ऋषियों, यक्षों, गन्धर्वों, असुरों तथा मनुष्यों को पीड़ा देता और उनका अपमान करता फिरता है ॥ ९॥
(बालकांड)

दशमुख रावण उच्छृङ्खल हो देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों के समूहोंको मारने तथा पीड़ा देने लगा ॥ ८ ॥
(उत्तर कांड)
जो विचित्र उद्यान थे, उनमें जाकर दशानन अत्यन्त कुपित हो उन सबको उजाड़ देता था ॥ ९॥

वह राक्षस नदी में हाथी की भाँति क्रीडा करता हुआ उसकी धाराओं को छिन्न-भिन्न कर देता था। वृक्षों को वायु की भाँति झकझोरता हुआ उखाड़ फेंकता था और पर्वतों को इन्द्र के हाथ से छूटे हुए वज्र की भाँति तोड़-फोड़ डालता था ॥ १० ॥

उस राक्षस ने अपने हाथ से उस कन्या के केश पकड़ लिये ॥ २७ १/२ ॥

लौटते समय दुरात्मा रावण बड़े हर्ष में भरा था। उसने मार्ग में अनेकानेक नरेशों, ऋषियों, देवताओं और दानवों की कन्याओं का अपहरण किया ॥ १॥
वह राक्षस जिस कन्या अथवा स्त्री को दर्शनीय रूप-सौन्दर्यसे युक्त देखता, उसके रक्षक बन्धुजनोंका वध करके उसे विमान पर बिठाकर रोक लेता था ॥ २ ॥
यह नीच निशाचर परायी स्त्रियों के साथ रमण करता है, इसलिये स्त्री के कारण ही इस दुर्बुद्धि राक्षस का वध होगा’ ॥ २० १/२ ॥

ऐसा कहकर उस राक्षस ने रम्भा को बलपूर्वक शिलापर बैठा लिया और कामभोगमें आसक्त हो उसके साथ समागम किया ॥ ४० १/२ ॥

‘देव! मैं बारम्बार प्रार्थना करती ही रह गयी कि प्रभो! मैं आपकी पुत्रवधू हूँ, मुझे छोड़ दीजिये; किंतु उसने मेरी सारी बातें अनसुनी कर दीं और बलपूर्वक मेरे साथ अत्याचार किया ॥ ४९ १/२ ॥
नहीं नजर आया ये मैसेज
इस साल यह मैसेज नजर नहीं आया जिसमें एक बहन कहती है कि उसे रावण जैसा भाई चाहिए। जिसकी बहन की ओर देखने पर उसने प्रभु तक से लड़ाई मोल ली।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Advertisement
Market Updates
Rashifal
Live Cricket Score
Weather Forecast
Weather Data Source: Wettervorhersage 14 tage
Latest news
अन्य खबरे