Thursday, October 16, 2025

विलुप्त हो चुकी बाजरा की खेती, फिर से शुरू किया मंडला की आदिवासी महिला किसान

डेस्क सेवा जोहार :- अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 के मौके पर मिलेट, सम्मेलन, मिलेट ट्रेनिंग तथा अन्य आयोजनों के फोटो से हमारे आपके आभासी दुनिया का पेज भर जाता हैं। मंडला जिला के सरकारी महकमें में मिलेट के नाम पर कोदो और कुटकी बढ़ावा दिया जा रहा है।

एक ऐसा मिलेट जो मंडला जिला की धरती, खेतों से विलुप्त हो चुका है। जिसे मंडला जिला के बैगा किसान सलहार बोलते हैं। अन्य किसान बाजरा कहते हैं। मंडला के आदिवासी महिला के स्वास्थ के लिए बाजरा बेहद जरूरी और उपयोगी अनाज है।

मंडला जिला की आदिवासी महिला किसान अब फिर से बाजरा की खेती करना शुरू किया है। ताकि मंडला की खेतों से विलुप्त हो चुका बाजरा को फिर से थाली में वापस लाया जा सकें। बाजरा आदिवासी भोजन संस्कृति का हिस्सा बन सकें। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वे NFHS के अनुसार जिला के आदिवासी महिलाओं में खून की कमी है जिसे एनेमिक कहा जाता है। यह सिकलसेल बीमारी का पहला चरण है।

सिकलसेल मुक्त भारत बनाने के पहला चरण में सरकार ने फोरटिफाइड चावल का वितरण किया था। जिसमें चावल में आयरन मिला कर वितरण किया गया। जिसे आदिवासी महिलाएं प्लास्टिक चावल समझ कर फेंक दिया या जानवरों को खिलाया। इस प्रोजेक्ट में सरकार करोड़ो रुपये खर्च किया है।

एक नजर सलहार (बाजरा) में आयरन की मात्रा को देखिये। बाजरा मिलेट में प्रति 100 ग्राम में आयरन 8 मि.ग्रा. और प्रोटीन 11.6 ग्रा. पाया जाता है जो कोदो मिलेट से कई गुणा अधिक है। मिलेट ईयर और मिलेट मिशन में बाजरा का नाम नहीं है। जबकि कोदो की तुलना में सलहार या बाजरा में अधिक पोषक तत्व आयरन पाया जाता है।

हाल ही में जमीनी अधिकारी के.एस. नेताम संयुक्त संचालक कृषि विभाग जबलपुर ने बाजरा के खेत में आदिवासी महिला किसान को प्रोत्साहित कर रहें हैं।

समाजसेवी व जानकार नरेश विश्वास की फ़ेसबुक वाल से साभार

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