बहुत खूबसूरत एक गजल लिख रहा हूं।
जो यह आदिवासियों का है वतन लिख रहा हूं।।
तुम्हारे जैसी होनहार युवा युवतियों के लिए मैं सलाम लिख रहा हूं।
अपने राज्य और आत्म सम्मान के लिए लड़ने वाली रानी दुर्गावती का नाम लिख रहा हूं।।
आदिवासियों का पहचान जय सेवा जोहार का नाम लिख रहा हूं।
उठो जागो समझो और पढ़ो लिखो ये काम लिख रहा हूं।।
तब होगा आदिवासियों का उद्धार यह इंतजाम लिख रहा हूं।।
राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह उनके हम हैं संतन लिख रहा हूं।
यह वतन आदिवासियों का है इसकी एक पहचान लिख रहा हूं।।
आदिवासियों का तीर्थ चारों धाम नहीं बावन गढ़ों का नाम लिख रहा हूं।।
प्रकृति के हैं हम पुजारी पांच तत्वों का भगवान लिख रहा हूं।
हम ना आस्तिक हैं ना नास्तिक हैं हम वास्तविक हैं यह पहचान लिख रहा हूं।।
हमारा धर्म नहीं संस्कृति है यह आदिकाल की एक पहचान लिख रहा हूं।
जल जंगल जमीन का अधिकार दिया भगवान बिरसा मुंडा का काम लिख रहा हूं।
ऊंच नीच का भेद मिटाकर सम्मान का अधिकार दिया अंबेडकर का संविधान लिख रहा हूं।।
दुनिया का पहला आदमी है आदिवासी इंसान लिख रहा हूं।
ज्ञान विज्ञान सभ्यता लाने वाले प्रथम आदिवासी भगवान लिख रहा हूं।।
गोंडवाना लैंड कोयामुर्रीदीप नागदीप सिंगारदीप जम्मुदीप था इस भारत का नाम लिख रहा हूं।
हमारा संस्कृति और इतिहास को मिटा दिया अब हम फिर से ढूंढे यह हमारा काम लिख रहा।।
आप सभी भाई बहनों प्रकृति शक्ति को मेरा पैगाम लिख रहा हूं।।
बहुत खूबसूरत हो तुम मैं एक गजल लिख रहा हूं।
यह देश है तुम्हारा बेताब तुम हो कल के यह वतन लिख रहा हूं।।
डॉ गौरी सिंह परते ,असिस्टेंट प्रोफेसर शासकीय महाविद्यालय मेंहदवानी ,जिला डिंडोरी मध्यप्रदेश